यकीनन 8 मई से अमेरिका ने 200 अरब डॉलर मूल्य के चीन के उत्पादों पर शुल्क 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करके भारत सहित पूरी दुनिया के देशों को अमेरिकी सामान पर आयात शुल्क बढ़ाने के खिलाफ आगाह किया है। इसी परिप्रेक्ष्य में इसी मई माह के पहले सप्ताह में अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस अमेरिका की 100 कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ भारत आए और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वाणिज्य व उद्योगमंत्री सुरेश प्रभु सहित व्यापार संगठनों से उच्चस्तरीय बातचीत करके भारत के द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए जा रहे अधिक आयात शुल्क पर जोरदार आपत्ति प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका की कंपनियों के लिए व्यापार बाधाएं पूरी तरह खत्म करे।अमेरिकी कंपनियों के खर्चे कम करने के लिए डेटा लोकलाइजेशन के नियम भी हटाए जाएं। रॉस ने कहा कि भारत का औसत आयात शुल्क 13.8 फीसदी है। यह बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा है। आयात शुल्क बाधाओं के कारण ही भारत अभी अमेरिका का 13वां बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है जबकि भारत का सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका को होता है। स्थिति यह है कि 2018 में अमेरिका का कुल व्यापार घाटा 621 अरब डॉलर रहा, जिसमें से भारत के साथ उसका व्यापार घाटा 21 अरब डॉलर रहा। ऐसे में अमेरिका भारत सहित व विजित रेशों में अमेरिकी सामान के निर्यातों में आ रही नियामकीय रुकावटों को दर करना चाहता है ताकि अमेरिका के व्यापार घाटे में कमी आ सके। इसी तरह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी बार- ट कटने टा टिवार्ट दे रहे हैं कि भारत के टाग अमेरिकी वस्तओं पर अन्यायपर्ण तरीके से आयात शल्क लगाए गए हैं। ऐसे में अमेरिका भी भारत को विभिन्न निगा शो न ग । गगी ओरिता नाग 2 र्ट गिकता.थों की 2019 को भारत को दी गई प्राथमिकताओं की सामान्यीकरण प्रणाली (जीएसपी) दर्जा समाप्त करने की निर्धारित अवधि समाप्त हो गई है लेकिन अमेरिका ने मा टो गर्ट है लेकिन अमेरिका ने कहा है कि वह 23 मई तक भारत का जीएसपी दर्जा समाप्त नहीं करेगा। अमेरिका से मिली व्यापार छट के तहत भारत से 7 जाने वाले करीब 56 अरब डॉलर यानी 40 हजार चोट के निर्यात कोर्ट ल नटी लगता है। अमेरिका के द्वारा भारत से आयात को दी जा रही तरजीही बंद करने से भारत से निर्यात किए जाने वाले कपडे. स म य प्लास्टिक पोटप टंजीनियरिंग उत्पाट ट टल्स सादकिल - के पुों जैसी संबंधित औद्योगिक इकाइयों की मुश्किलें मुह बाए खड़ा है। इन उद्योगों की मुश्किले बढ़ने से इनमें कार्यरत हजारों लोगों के समक्ष नौकरियां जाने की चिंताएं भी खड़ी होंगी। यह सही है कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा कतिपय भारतीय वस्तुओं के किए जाने वाले निर्यात का प्राथमिकता का वापस लिए जाने के बाद निर्यात क्षेत्र को वापसी करना और भी मुश्किल होगा। यह बात देश के अभियांत्रिकी निर्यात के लिए खासतौर पर सही है क्योंकि उसे शून्य टैरिफ वाले देशों से तगड़ी प्रतिस्पर्धा क्योंकि उसे शून्य टैरिफ वाले देशों से तगड़ी प्रतिस्प का सामना करना होगा। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1976 से जीएसपी व्यवस्था के तहत विकासशील देशों को दी जाने वाली आयात शुल्क रियायत के मद्देनजर करीब 2000 भारतीय उत्पादों को शुल्क मुक्त रूप से अमेरिका में भेजने का अनुमति मिली हुई है। आंकड़े बता रहे हैं कि जीएसपी के तहत तरजीही के कारण अमेरिका को जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसका एक-चौथाई भारतीय निर्यातको को प्राप्त होता है। लेकिन अमेरिका द्वारा भारत से व्यापार में मांगी जा रही छूट उसके द्वारा जीएसपी वापस लिए जाने से भारत को होने वाले राजस्व नुकसान की तुलना में काफी ज्यादा है। जीएसपी वापस लिए जाने से भारत को करीब 19 से 24 करोड़ डॉलर सालाना के राजस्व की हानि होगी, जबकि जीएसपी बरकरार रखे जाने के बदले अमेरिका द्वारा आईटी उत्पादों पर जो छूट मांगी जा रही है, उसकी कीमत करीब 3.2 अरब डॉलर होगी। इतना ही नहीं, अमेरिका ने भारत द्वारा चिकित्सा उपकरणों पर निर्धारित की गई कीमत सीमा का भी विरोध किया है। भारत में इन चिकित्सा उपकरणों का 7 अरब डॉलर का बाजार है। यह बाजार आयष्मान भारत के परी तरह अमल में आने के बाद तेजी से बढ़कर 12 अरब डॉलर पर पहंच जाने का अनमान है। वहीं अगले 2-3 वर्षों में इसके 20 अरब डॉलर पर पहंच जाने का अनमान है। ऐसे में भारत-अमेरिका के बीच कारोबारी तनाव को कम करने के लिए जिस तरह से अमेरिका के वाणिज्य मंत्री रॉस ने हाल में भारत आकर व्यापक वार्ता की है, ऐसी व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाना होगा और एक उचित दृष्टिकोण प्रस्तुत करना होगा। निसंदेह भारत का यह एक सराहनीय कटनीतिक कदम है कि भारत में अमेरिका से आयातित बादाम, अखरोट और दालों समेत 29 वस्तुओं पर जवाबी शुल्क लगाने की समय सीमा एक बार फिर 2 मई से बढ़ाकर 16 मई, 2019 कर दी है। अब भारत अमेरिका के साथ कारोबार संबंधी तनाव को कम करने के लिए लचीला रुख अपनाते हुए अमेरिका से आयात होने वाले उन्नत तकनीक से लैस स्मार्ट फोन, सूचना एवं संचार तकनीक से जुड़े उत्पाद जैसे विभिन्न उत्पादों पर कम आयात शुल्क लगाने की डगर पर आगे बढ़ सकता है। निश्चित रूप से अमेरिका के साथ व्यापार मतभेदों के हल के लिए कारोबार कूटनीति की जरूरत है। भारत को आगे बढकर यह सनिश्चित करना चाहिए कि अमेरिका से बदलता माहौल भारतीय निर्यात को प्रभावित न करे। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री रॉस द्वारा हाल ही में भारत यात्रा के दौरान भारत के जिन संरक्षणवादी कदमों को आपत्तिजनक कहते हए रेखांकित किया है, उन पर अवश्य ध्यान दिया जाना होगा ।हम आशा करें कि 23 मई के बाद बनने वाली नयी सरकार भारत अमेरिकी विदेश व्यापार संबंधी महों पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय उत्पादों, सेवाओं और निर्यात की अहमियत को बनाए रखने के लिए उपयक्त रणनीति की डगर पर आगे बढेगी।यह सही है कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा कतिपय भारतीय वस्तुओं के किए जाने वाले निर्यात की प्राथमिकता को वापस लिए जाने के बाद निर्यात क्षेत्र को वापसी करना और भी मश्किल होगा। यह बात देश के अभियांत्रिकी निर्यात के लिए खासतौर पर सही है। क्योंकि उसे शून्य टैरिफ वाले देशों से तगड़ी प्रतिस्पधा का सामना करना होगा।
कारोबार कटनीति से संभव समाधान